धर्म

आज मनाया जाएगा लोहड़ी का त्योहार, जानें इसका महत्व और इतिहास

पूरे देश में 13 जनवरी यानी आज लोहड़ी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। उत्तर भारत के राज्यों में यह त्योहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है और खासतौर पर पंजाब और हरियाणा समेत हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी इस त्योहार की काफी धूम है। आइए जानते हैं इस खास दिन का क्या है महत्व और इतिहास?

लोहड़ी का इतिहास
देशभर में लोहड़ी का बहुत सांस्कृतिक महत्व भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह त्योहार एकजुटता का भी प्रतीक है, जो लोगों को एक साथ लाता है। लोहड़ी का यह पावन पर्व कड़ाके की सर्दियों के समाप्त होने का भी प्रतीक है। यह त्योहार किसानों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि लोहड़ी के समय गन्ना, गेहूं, सरसों और खास तौर पर रबी की फसलों की कटाई होती है। लोककथाओं और पारिवारिक परंपराओं में लोहड़ी का त्योहार गहराई से जुड़ा है। इस त्योहार को कई दशकों से फसल उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। बता दें कि पारंपरिक रूप से लोहड़ी का पर्व कृषि पर निर्भर परिवारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन लोग भरपूर फसल के लिए आभार व्यक्त करते हैं। लोहड़ी का त्योहार अग्नि से भी जुड़ा है, जो गर्मी और समृद्धि का प्रतीक भा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी के बाद से सर्दी धीरे-धीरे कम होने लगती है और दिन बड़े होने लगते हैं।

दुल्ला भट्टी की कहानी
लोहड़ी के पावन पर्व के दिन सभी लोग दुल्ला भट्टी से जुड़े गीत भी गाते हैं। एक लोक कथा दुल्ली भट्टी की इस पर्व से जुड़ी हुई है। अकबर के शासन काल के दौरान दुल्ला भट्टी नाम का एक आदमी था, जो कि पंजाब में रहता था। उस समय कई लड़कियों को अमीर घरानों में बेचा जाता था। ऐसा कहते हैं कि कई लड़कियों को दुल्ला भट्टी ने साहस दिखाते हुए अमीर सौदागरों से मुक्त कराया था। इसके खिलाफ दुल्ला भट्टी ने आवाज उठाई थी। इतना ही नहीं दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों का विवाह भी करवाया। इस कारण दुल्ला भट्टी पंजाब में खूब प्रसिद्ध हुआ. इसके बाद उसे नायक की उपाधि दी गई।

जानें लोहड़ी का महत्व
लोहड़ी का त्योहार किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह दिन सरसों, रबी, गन्ना और गेहूं, जैसी फसलों की कटाई का मौसम होता है। लोहड़ी का त्योहार कासतौर पर बुवाई के मौसम के अंत के साथ-साथ और एक नए कृषि की शुरुआत का भी प्रतीक भी माना जाता है। कृषि के अलावा लोहड़ी का यह पावन त्योहार प्रकृति के प्रति सम्मान, आभार व्यक्त करने और समृद्धि और उर्वरता के लिए आशीर्वाद मांगने के लिए समुदायों को एक साथ लाता है।

कैसे मानते हैं लोहड़ी?
लोहड़ी का त्योहार आज भी लोग काफी भव्य तरीके से मनाते हैं। लोहड़ी के दिन लोग शाम के समय अलाव जलाकर लोकगीत गाते हैं, भांगड़ा और गिद्दा जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं। इसके साथ ही लोग लोहड़ी के दिन भांगड़ा करते हुए गुड़-रेवड़ी आदि बांटते हैं। लोहड़ी पर अलाव में तिल, गुड़, पॉपकॉर्न और मूंगफली जैसी चीजों का अर्घ्य दिया जाता है। इस अवसर पर मक्की की रोटी, सरसों का साग, तिल के लड्डू, गज्जक और रेवड़ी बनाए जाते हैं। नवजात शिशुओं और नवविवाहितों के परिवाप के लिए लोहड़ी का त्योहार एक अलग महत्व रखता है। शिशु या विवाहित जोड़े के लिए पहली लोहड़ी विशेष अनुष्ठानों, आशीर्वाद और समारोहों के साथ मनाई जाती है। रिवार नए सदस्यों के लिए इस दिन समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशी की कामना की जाती है।

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